जाति-आधारित जनगणना के मुद्दे पर अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पत्रकारों से ही सवाल कर दिया, 'मीडिया में SC, ST और OBC समाज के कितने लोग हैं?'
उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिर्फ एक ही हाथ ऊपर उठा। वह भी कैमरामैन था जो OBC समाज का था।
राहुल गांधी ने जैसा कि खुद बताया था कि उन्होंने एक 'ऐतिहासिक सवाल' पूछा। दरअसल, वह 33 साल पहले अपने पिता राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा की गई एक ऐतिहासिक गलती को संशोधित कर रहे थे।
वस्तुतः इंदिरा गांधी ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल रखा था, उस बात को भी अब 43 साल हो गए। इसलिए राहुल अपनी दादी की ऐतिहासिक गलती को भी सुधार रहे थे।
जनवरी 2002 में दिग्विजय सिंह का प्रस्तावित 'भोपाल एजेंडा' दलितों और आदिवासियों को न्याय दिलाने का एक प्रयास था।लेकिन उनकी अपनी पार्टी ने ही उनके प्रयास को दबा दिया था, यह भी इतिहास है।
राहुल गांधी ने कहा, 'हम कांग्रेस शासित राज्यों में जाति-आधारित जनगणना कराएंगे'। दरअसल, राहुल गांधी कांग्रेस द्वारा की गई ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।
यह चमत्कार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वजह से हुआ है। भले काँग्रेसवाले उन्हे क्रेडिट दे या न दे।
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस के विरुद्ध एक बड़ा गठबंधन खड़ा कर लिया था। तब उस मोर्चे में जनसंघ भी शामिल था। हालांकि लोहियावादी मधु लिमये ने 'संघ' के खतरे को पहचान लिया था। जिस बिहार को उन्होंने सिंचित किया, उसी बिहार के लोहियावादी नीतीश कुमार ने कांग्रेस को साथ लेकर संघ-भाजपा के विरोध में बड़ा मोर्चा खड़ा कर लिया है। इस तरह उन्होंने एक और ऐतिहासिक गलती को संशोधित कर लिया।
बेदाग, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष नीतीश कुमार में भरोसा इन सभी परस्पर विरोधी दलों को एक साथ ला सका। गांधी, आंबेडकर और लोहिया ही इस समाजवाद की विचारधारा है। नीतीश कुमार ने उस विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया। CAA / NRC के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाले वह पहले मुख्यमंत्री थे।
संयुक्त (यूनाइटेड) सोशलिस्ट पार्टी के नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया 'संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ' का नारा बुलंद किया। कर्पूरी ठाकुर के बाद इसका सबसे प्रभावी कार्यान्वयन अगर किसी ने किया है तो वो हैं जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार। नीतीश कुमार ने दलितों में वंचितों और ओबीसी में सबसे अधिक वंचितों को न्याय दिलाने की ज़िम्मेदारी ली है। मंडल कमीशन समाजवादियों की ही देन है।
1990 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने मंडल आयोग की घोषणा की, तो राजीव गांधी ने इसका विरोध किया था!
आरक्षण विरोधियों द्वारा हमेशा किए जाने वाले अतार्किक विरोध की ही भाषा बोलते हुए राजीव गांधी ने कहा, 'क्या पिछड़े वर्ग के जो लोग मंत्री-पद का सुख भोग चुके हैं, उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा?' यह सवाल संसद में पूछा गया। फिर सदन से 'How many?', ऐसे कितने हैं? यह काउंटर प्रश्न उनसे पूछा गया।
तैंतीस साल के बाद पोल चेंज हो चुका है l राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुछा 'How Many ?'
पत्रकारों में SC, ST और OBC समाज के कितने लोग हैं?
उस वक्त राजीव गांधी ने 'समाज में फूट पड़ जाने' का तर्क दिया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वही तर्क दे रहे हैं। वह कह रहे हैं कि 'जाति-आधारित जनगणना देश को जातियों में बांटने की साजिश है।'
केवल दक्षिण की द्रविड़ पार्टी और उत्तर एवं मध्य भारत के समाजवादी ही इस सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। सत्ता में आने के बाद केवल समाजवादियों और द्रविड़ पार्टियों ने संपत्ति, सम्मान, समृद्धि और सहभाग के रूप में वंचितों को सत्ता में भागीदारी देने की कोशिश की। फर्क सिर्फ इतना है कि राहुल गांधी ने अब कांग्रेस पार्टी को सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़ा किया है।
Scheduled Castes और Scheduled Tribes के लिए संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद इन दोनों वर्ग के लोग आज भी सत्ता से दूर हैं। नौकरी, शिक्षा और विकास जैसे किसी भी मोर्चे पर उनकी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। मंडल आयोग पर अमल करने के बाद ओबीसी लोगों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। लेकिन आज 30 साल बाद भी अधिकारीवर्ग में ओबीसी की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत भी नहीं है।
जाति-आधारित जनगणना सिर्फ व्यक्तियों की गिनती नहीं है, बल्कि विभिन्न जाति समूहों का आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक सर्वेक्षण करना भी है। देश के विकास में उनका स्थान निर्धारित करना भी है। समान हिस्सेदारी के लिए राजनीतिक एजेंडा निर्धारित करना भी है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह जी ने खूब सही कहा देश का राजनैतिक अजेंडा बदलेगा, नफरत का नरेटिव बदलेगा। यह संघर्ष उसी के लिए है।
1) There is no alternative यह TINA फैक्टर आज तक मोदी की सफलता में योगदान दे रहा है। INDIA का गठन पहली बार उस धारणा को ध्वस्त करेगा।
2) विकास की तथाकथित राजनीति में उपेक्षित और वंचित जातियों की हिस्सेदारी कितनी है? इस सवाल का जवाब पहली बार मिलेगा।
3) मराठा और जाट जैसी किसान जातियों की आरक्षण की समस्या हल हो जाएगी।
4) द्वेष, नफरत जैसी उन्मादी राजनीति को देश भर में करारा जवाब मिलेगा।
5) जाति व्यवस्था और जातिगत भेदभाव के कारण इस देश के 85 प्रतिशत से अधिक लोग अपने हक से वंचित रहे हैं। जातियों के विकास से ही जाति-व्यवस्था का अंत संभव है।
महात्मा फुले किसानों, शूद्र जातियों और दलितों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले पहले व्यक्ति थे।
2 नवंबर, 1882 को उन्होंने ब्रिटिश सरकार से सरकारी विभाग में गैर-ब्राह्मण शूद्र किसानों के बच्चों के लिए नौकरी और शिक्षा में स्थान की मांग की थी।
महात्मा फुले की इस मांग को छत्रपति शाहू महाराज ने साकार किया। 26 जुलाई 1902 को शाहू महाराज ने कोल्हापुर संस्थानों में आरक्षण सुनिश्चित कर दिया।
पहला कम्युनल ऑर्डर 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी में पारित किया गया था। दक्षिण में आरक्षण अमल में आया। पेरियार और डीएमके ने 70 फीसदी तक आरक्षण दिया। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान सभा में 70 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को स्वीकार किया था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी कर दी है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने वाली केंद्र सरकार सामाजिक आरक्षण पर लगी अधिकतम सीमा की इस बंदिश को हटाने के लिए तैयार नहीं है। उल्टे आरक्षण की माँग के कारण जातियों के बीच संघर्ष के बीज बोए जा रहे हैं।
जातिगत भेदभाव और अवसर की असमानताओं से विभाजित समाज में Creativity और Productivity मर सी जाती है। समाज का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। इससे लोकतंत्र भी संकट में आ जाता है।
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री Joseph E. Stiglitz ने अपनी पुस्तक 'The Price of Inequality' में निम्नलिखित टिप्पणी की है।
High inequality makes for a less efficient and productive economy.
Whenever we dismiss equality of opportunity, we are not using one of our most valuable assets - our people - in the most productive way possible.
नीतीश कुमार की मांग जातीय विभाजन की बिल्कुल भी नहीं है। देश में सबसे पहला आरक्षण देने वाले छत्रपति शाहू महाराज ने 19 अप्रैल 1919 को अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा के 13वें अधिवेशन में कानपुर में भाषण दिया था। 'अंग्रेजी शिक्षा से भारतीयों की तीसरी आँख खोलने का काम किया था।' उन्होंने जोर देकर कहा था कि 'शिक्षा से जागृत हुए देश के जातीय संगठन उन्नति का मार्गप्रशस्त करेंगे'। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 'आज स्थिति चाहे जैसी भी हो, लेकिन ज्ञान के कारण भविष्य अवश्य बदलेगा'।
जाति-आधारित जनगणना उन वंचित भारतीयों के लिए भविष्य के द्वार खोलने का एक प्रयास है जो सौ साल बाद भी जाति-व्यवस्था के कारण वंचित और कुंठित रहे हैं।
एक और बात हो रही है, हर चुनाव में दक्षिण और उत्तर के नतीजों में जो अंतर दिखाई दे रहा है, वह अंतर 2024 के लोकसभा चुनावी नतीजों के बाद खत्म हो जाएगा।
निश्चित रूप से नीतीश कुमार ने देश का नरेटिव बदल दिया है।
- कपिल पाटील
(राष्ट्रीय महासचिव, जनता दल (यूनाइटेड) और सदस्य, महाराष्ट्र विधान परिषद)
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