Monday, 3 July 2023

बुद्ध की विरासत से जुड़ता सूरत बदलने का युद्ध



सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध हिंदी कवि दुष्यन्त कुमार की कविता से हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से पटना में बुलाई गई बैठक में देशभर से 15 पार्टियां शामिल हुईं। चार घंटे तक चर्चा हुई। वह बैठक चेहरा तय करने के लिए नहीं थी। प्रधानमंत्री कौन? यह निश्चित करने के लिए तो बिलकुल नहीं थी। पटना का हंगामा देश की सूरत बदलने के लिए था । पटना बैठक की कमाई यह है कि मोदी के खिलाफ आपका चेहरा कौन है? इस चर्चा को इस बैठक ने निरर्थक करार दिया। भारत ने राष्ट्रपति लोकतंत्र को नहीं अपनाया है।

नीतीश कुमार खुद बता चुके हैं कि उनकी ऐसी कोई आकांक्षा नहीं है । जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पार्टी बैठक में उत्साहित कार्यकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा, ''नीतीश कुमार प्रधानमंत्री की दौड़ में नहीं हैं । यह जनता दल (यूनाइटेड) का उद्देश्य नहीं है। यह चर्चा करना एकता में बाधक भी हो सकता है।''
ललन सिंह ने जब यह कहा था तब ही मीडिया और देश की सभी राजनीतिक धाराएं आश्वस्त थी कि नीतीश कुमार का प्रयास ईमानदार है। दिल से है। अन्यथा इतने बड़े दिग्गज नेता नीतीश कुमार के बुलावे पर भी पटना नहीं आते l यह विश्वास नीतीश कुमार के बेदाग जीवन, निष्ठा, ईमानदारी और जिस तरह से उन्होंने बिहार का चेहरा बदल दिया, उससे पैदा हुआ है। दूसरी बात यह है कि नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन में कभी भी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के मूल्यों से समझौता नहीं किया है। उन्होंने एनआरसी के खिलाफ बिहार विधानमंडल में प्रस्ताव पारित करने का साहस दिखाया।

बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और दस्तूर ख़ुद्द राहुल गांधी शामिल हुए। उन्होंने कहीं भी बड़ी पार्टी का नेता होने का दिखावा नहीं किया। भारत जोड़ो यात्रा से होने वाली कमाई घमंड में तब्दील नहीं हुई है l एक पल के लिए भी किसी ने ऐसा नहीं सोचा l इतनी सहजता से राहुल गांधी काम कर रहे थे l जब नीतीश कुमार ने उन्हे बोलने को कहा तो राहुल गांधी ने बड़ी विनम्रता से कहा, ''पहले खड़गे साहब बोलेंगे.''

ममतादी, स्टालिन, अखिलेश यादव से लेकर उद्धव ठाकरे, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव तक, किसने माना होगा कि पहली ही मुलाकात में इन सबकी पॉलिटिकल केमिस्ट्री मिल जाएगी! यह सच है कि उमर अब्दुल्ला ने कहा, ''इतने लोग एक साथ जुटे हैं ये कोई मामूली बात नहीं है। नीतीश कुमार को इस कामयाबी का श्रेय जाता है। इतने लोगों इकट्ठा करना बड़ी बात है। मकसद ताकत हासिल करना नहीं, यह सत्ता नहीं बल्कि वसूलों की लड़ाई हैं। इरादों की लड़ाई है। हम देश को मुसीबत से निकालने के लिए मिल चुके हैं।''

यह सच है कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा ने उस दिन छोटे पर्दे की जगह घेर ली थी l लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को पटना की बैठक पर ध्यान देना पड़ा। इस पर हुई चर्चा को अधिक जगह देनी पडी।

पाटलिपुत्र शहर को ऐतिहासिक राजनीतिक विरासत है। डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा था, भारतीय संवैधानिक मूल्ये हमने विदेश से नहीं बल्कि बुद्ध के तत्वज्ञान से ली है। भारत को बुद्ध, महावीर और अशोक की वह विरासत बिहार से मिली।

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुआ 1974 का आंदोलन में बिहार से शुरू हुआ।

आपातकाल के बाद 1977 में हुई पहले सत्ता परिवर्तन के की प्रेरणा बिहार था।

13 अगस्त 1977 की 'बेलछी' यात्रा इंदिरा गांधी की वापसी का कारण बनी l वह बेलछी नरसंहार में मारे गये दलितों के परिवारों से मिलने गयी थीं l कोई सड़क नहीं थी, तो उन्होंने हाथियों पर नदी पार की। वहां से वह एक नये विश्वास के साथ दिल्ली लौटीं। इंदिराजी की सत्ता में वापसी की राह बिहार से शुरू हुई।

उसी बिहार से अब देश में तीसरे बड़े परिवर्तन का आगाज किया गया है।

ममता बनर्जी ने पटना बैठक को विपक्षी दलों की बैठक कहने पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, "यह देशभक्तों की बैठक है।"

इसीलिए नीतीश कुमार बार-बार कह रहे हैं कि "स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास उन लोगों द्वारा बदलने की साजिश हो रही है जिन्होंने इसमें भाग नहीं लिया l"

'देश को बचाने के लिए अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियां एक साथ आईं', यह उद्धव ठाकरे का बयान और उनके साथ में बैठीं महबूबा मुफ्ती द्वारा ''आइडिया ऑफ इंडिया'' का जिक्र।

एक तरफ बीजेपी का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और दूसरी तरफ देशभक्तिपूर्ण 'आइडिया ऑफ इंडिया'।

यह देशभक्ति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बीच संघर्ष को उजागर करता है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा, ''Patriotism is the exact opposite of nationalism: nationalism is a betrayal of patriotism''

महबूबा मुफ्ती ने कहा, ''हम गांधी के देश को गोडसे का देश नहीं बनने देंगे.''

महाराष्ट्र में गांधी पर गोडसे और गोडसेवादीयों द्वारा कई हमले हुए। प्रबोधनकार ठाकरे ने उनमे से दो साजिशों को नाकाम कर दिया l गांधी को बचाया l उस प्रबोधनकार ठाकरे के पोते उद्धव ठाकरे बैठक में महबूबा मुफ्ती के साथ में बैठे थे l कश्मीर के बारे में धारा 370 पर अपने मतभेद भुलाकर वे एकजुट हुए। इसका जिक्र उद्धवजी ने महबूबा मुफ्ती से बात करते हुए किया। फिर महबूबा जी ने कहा, "यह इतिहास बन गया।"

ये है देश को बचाने की एकता, ऐसा पटना बैठक से प्रतीत होता है l देश और देशभक्ति की बदली हुई परिभाषा के पीछे की बेचैनी तब रेखांकित होती है l

विपक्ष की एकता के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं l उनका संयुक्त एजेंडा वर्तमान की चुनौतियों का समाधान किस प्रकार करेगा। गरीबी और महंगाई मुद्दा हैl लेकिन हमें बढ़ी हुई असमानता (Disparity) की खाई का जवाब ढूंढना होगा l परिवर्तन की प्रक्रिया में मध्यम वर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं को समायोजित करना होगा। मध्यम वर्ग और ऊंची जातियों की आकांक्षाओं को उस ताकत को कमजोर करना होगा जो जाति-प्रधान हिंदू धर्म ने राष्ट्रवाद के नाम पर हासिल की है।

बीजेपी के 31 फीसदी वोटों के मुकाबले सिर्फ 69 फीसदी वोट जोड़ने से ये मसला हल नहीं होगा l विरोधियों का मत विभाजन इस योग को अमान्य कर देता है। First past the post यह चुनावी प्रणाली बहुमत को सत्ता में जगह भी नहीं देती। अल्पसंख्यक होने के बावजूद जातीय वर्ण वर्चस्व की जीत होती है।बहुसंस्कृतिवाद के देश में विविधता को ही अस्वीकार कर दिया जाता है। संसद की सीटें बढ़ने पर देश की इस बहुलता को आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional representation) के बारे में सोचना होगा। बेशक, इस लंबी दूरी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुल 69 प्रतिशत जोडना प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए अभी भी कई भाजपा विरोधी छोटी पार्टियों को समायोजित करना होगा।

विभिन्न विचारधाराओं की क्षेत्रीय पार्टियों के एक साथ आने का एक और कारण राज्यों का अशक्त होना है। GST ने राज्यों पर वित्तीय बाधाएं बढा दी हैं। राज्यपाल का पद इतना शक्तिशाली कभी नहीं रहा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत तबादलों का अधिकार दिल्ली क्षेत्र से वापस ले लिया गया है। क्या Union of India (संघराज्य ) शब्द अब भारतीय संविधान तक ही सीमित है? ऐसी स्थिति है। इसलिए विपक्ष की एकता अपरिहार्य हो गई है।

सत्ताधारी दल की एक देश, एक कानून, एक भाषा की नीति यहीं नहीं रुकती। भक्तों की भाषा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे, राष्ट्रगान जन गण मन और यहां तक कि स्वतंत्रता दिवस को भी चुनौती देने तक पहुंच गई है l उस भाषा को बोलने वालों के लिए कोई पाबंदी नहीं है। "तिरंगे और संविधान को सीने से लगाकर विरोध करें", कहने वाले उमर खालिद 1000 दिन बाद भी जेल में हैं। मोहसिन की मॉब लिंचिंग करने वाले और बिलकिस बानो पर अत्याचार करने वाले जेल से बाहर हैं।

देश में बेरोजगारी 8.11 फीसदी बढ़ गई है। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में झटका लगा है। केंद्र द्वारा भले ही किसान विरोधी कानूनों को वापस ले लिया गया हो, लेकिन किसानों का असंतोष खत्म नहीं हुआ है l मणिपुर जल रहा है l बिहार का जाती जनगणना अभियान रोकने की कोशिशें चल रही हैं। एक तरफ freebies और दूसरी तरफ समान नागरिक अधिनियम जैसे गैर-मुद्दे सत्ताधारी अभिजात वर्ग के उपकरण बन गए हैं। सरकारी जाँच प्रणाली का दुरुपयोग हो रहा है। क्षेत्रीय पहचानों के साथ दुर्व्यवहार और गरीबों, वंचितों और श्रमिक वर्ग के उत्पीड़न ने देश को अस्त-व्यस्त कर दिया है। चुनौतियों और सवालों की सूची लंबी है।

बहरहाल, पटना की एकता ने निरंकुश सत्ता को झटका दिया है।

दुष्यन्त कुमार के शब्दों में,
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

- कपिल पाटील
(नेशनल जनरल सेक्रेटरी, जनता दल (यूनाइटेड) एवं सदस्य, महाराष्ट्र विधान परिषद)