Tuesday, 31 October 2023

नीतीश कुमार देश का नरेटिव बदलेंगे?


जाति-आधारित जनगणना के मुद्दे पर अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पत्रकारों से ही सवाल कर दिया, 'मीडिया में SC, ST और OBC समाज के कितने लोग हैं?'

उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिर्फ एक ही हाथ ऊपर उठा। वह भी कैमरामैन था जो OBC समाज का था।

राहुल गांधी ने जैसा कि खुद बताया था कि उन्होंने एक 'ऐतिहासिक सवाल' पूछा। दरअसल, वह 33 साल पहले अपने पिता राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा की गई एक ऐतिहासिक गलती को संशोधित कर रहे थे।

वस्तुतः इंदिरा गांधी ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल रखा था, उस बात को भी अब 43 साल हो गए। इसलिए राहुल अपनी दादी की ऐतिहासिक गलती को भी सुधार रहे थे।

जनवरी 2002 में दिग्विजय सिंह का प्रस्तावित 'भोपाल एजेंडा' दलितों और आदिवासियों को न्याय दिलाने का एक प्रयास था।लेकिन उनकी अपनी पार्टी ने ही उनके प्रयास को दबा दिया था, यह भी इतिहास है।

राहुल गांधी ने कहा, 'हम कांग्रेस शासित राज्यों में जाति-आधारित जनगणना कराएंगे'। दरअसल, राहुल गांधी कांग्रेस द्वारा की गई ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।

यह चमत्कार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वजह से हुआ है। भले काँग्रेसवाले उन्हे क्रेडिट दे या न दे 

उन्हीं की पहल पर INDIA का गठन हुआ है। राजनीतिक तौर पर यह आश्चर्य की बात भी है।

डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस के विरुद्ध एक बड़ा गठबंधन खड़ा कर लिया था। तब उस मोर्चे में जनसंघ भी शामिल था। हालांकि लोहियावादी मधु लिमये ने 'संघ' के खतरे को पहचान लिया था। जिस बिहार को उन्होंने सिंचित किया, उसी बिहार के लोहियावादी नीतीश कुमार ने कांग्रेस को साथ लेकर संघ-भाजपा के विरोध में बड़ा मोर्चा खड़ा कर लिया है। इस तरह उन्होंने एक और ऐतिहासिक गलती को संशोधित कर लिया।

बेदाग, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष नीतीश कुमार में भरोसा इन सभी परस्पर विरोधी दलों को एक साथ ला सका। गांधी, आंबेडकर और लोहिया ही इस समाजवाद की विचारधारा है। नीतीश कुमार ने उस विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया। CAA  / NRC के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाले वह पहले मुख्यमंत्री थे।

संयुक्त (यूनाइटेड) सोशलिस्ट पार्टी के नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया 'संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ' का नारा बुलंद किया। कर्पूरी ठाकुर के बाद इसका सबसे प्रभावी कार्यान्वयन अगर किसी ने किया है तो वो हैं जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार। नीतीश कुमार ने दलितों में वंचितों और ओबीसी में सबसे अधिक वंचितों को न्याय दिलाने की ज़िम्मेदारी ली है। मंडल कमीशन समाजवादियों की ही देन है।

1990 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने मंडल आयोग की घोषणा की, तो राजीव गांधी ने इसका विरोध किया था!

आरक्षण विरोधियों द्वारा हमेशा किए जाने वाले अतार्किक विरोध की ही भाषा बोलते हुए राजीव गांधी ने कहा, 'क्या पिछड़े वर्ग के जो लोग मंत्री-पद का सुख भोग चुके हैं, उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा?' यह सवाल संसद में पूछा गया। फिर सदन से 'How many?', ऐसे कितने हैं? यह काउंटर प्रश्न उनसे पूछा गया।

तैंतीस साल के बाद पोल चेंज हो चुका है l राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुछा 'How Many ?'

पत्रकारों में SC, ST और OBC समाज के कितने लोग हैं?

उस वक्त राजीव गांधी ने 'समाज में फूट पड़ जाने' का तर्क दिया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वही तर्क दे रहे हैं। वह कह रहे हैं कि 'जाति-आधारित जनगणना देश को जातियों में बांटने की साजिश है।'

केवल दक्षिण की द्रविड़ पार्टी और उत्तर एवं मध्य भारत के समाजवादी ही इस सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। सत्ता में आने के बाद केवल समाजवादियों और द्रविड़ पार्टियों ने संपत्ति, सम्मान, समृद्धि और सहभाग के रूप में वंचितों को सत्ता में भागीदारी देने की कोशिश की। फर्क सिर्फ इतना है कि राहुल गांधी ने अब कांग्रेस पार्टी को सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़ा किया है।

Scheduled Castes और Scheduled Tribes के लिए संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद इन दोनों वर्ग के लोग आज भी सत्ता से दूर हैं। नौकरी, शिक्षा और विकास जैसे किसी भी मोर्चे पर उनकी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। मंडल आयोग पर अमल करने के बाद ओबीसी लोगों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। लेकिन आज 30 साल बाद भी अधिकारीवर्ग में ओबीसी की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत भी नहीं है।

जाति-आधारित जनगणना सिर्फ व्यक्तियों की गिनती नहीं है, बल्कि विभिन्न जाति समूहों का आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक सर्वेक्षण करना भी है। देश के विकास में उनका स्थान निर्धारित करना भी है। समान हिस्सेदारी के लिए राजनीतिक एजेंडा निर्धारित करना भी है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह जी ने खूब सही कहा देश का राजनैतिक अजेंडा बदलेगा, नफरत का नरेटिव बदलेगा यह संघर्ष उसी के लिए है। 

बिहार के इस प्रयोग से कई परिवर्तन होने वाले हैं। 

1) There is no alternative यह TINA फैक्टर आज तक मोदी की सफलता में योगदान दे रहा है। INDIA का गठन पहली बार उस धारणा को ध्वस्त करेगा।

2) विकास की तथाकथित राजनीति में उपेक्षित और वंचित जातियों की हिस्सेदारी कितनी है? इस सवाल का जवाब पहली बार मिलेगा।

3) मराठा और जाट जैसी किसान जातियों की आरक्षण की समस्या हल हो जाएगी।

4) द्वेष, नफरत जैसी उन्मादी राजनीति को देश भर में करारा जवाब मिलेगा।

5) जाति व्यवस्था और जातिगत भेदभाव के कारण इस देश के 85 प्रतिशत से अधिक लोग अपने हक से वंचित रहे हैं। जातियों के विकास से ही जाति-व्यवस्था का अंत संभव है।

महात्मा फुले किसानों, शूद्र जातियों और दलितों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले पहले व्यक्ति थे।

2 नवंबर, 1882 को उन्होंने ब्रिटिश सरकार से सरकारी विभाग में गैर-ब्राह्मण शूद्र किसानों के बच्चों के लिए नौकरी और शिक्षा में स्थान की मांग की थी।
महात्मा फुले की इस मांग को छत्रपति शाहू महाराज ने साकार किया। 26 जुलाई 1902 को शाहू महाराज ने कोल्हापुर संस्थानों में आरक्षण सुनिश्चित कर दिया।

पहला कम्युनल ऑर्डर 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी में पारित किया गया था। दक्षिण में आरक्षण अमल में आया। पेरियार और डीएमके ने 70 फीसदी तक आरक्षण दिया। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान सभा में 70 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को स्वीकार किया था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी कर दी है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने वाली केंद्र सरकार सामाजिक आरक्षण पर लगी अधिकतम सीमा की इस बंदिश को हटाने के लिए तैयार नहीं है। उल्टे आरक्षण की माँग के कारण जातियों के बीच संघर्ष के बीज बोए जा रहे हैं।

जातिगत भेदभाव और अवसर की असमानताओं से विभाजित समाज में Creativity और Productivity मर सी जाती है। समाज का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। इससे लोकतंत्र भी संकट में आ जाता है।

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री Joseph E. Stiglitz ने अपनी पुस्तक  'The Price of Inequality'  में निम्नलिखित टिप्पणी की है।

High inequality makes for a less efficient and productive economy.

Whenever we dismiss equality of opportunity, we are not using one of our most valuable assets - our people - in the most productive way possible.

नीतीश कुमार की मांग जातीय विभाजन की बिल्कुल भी नहीं है। देश में सबसे पहला आरक्षण देने वाले छत्रपति शाहू महाराज ने 19 अप्रैल 1919 को अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा के 13वें अधिवेशन में कानपुर में भाषण दिया था। 'अंग्रेजी शिक्षा से भारतीयों की तीसरी आँख खोलने का काम किया था।' उन्होंने जोर देकर कहा था कि 'शिक्षा से जागृत हुए देश के जातीय संगठन उन्नति का मार्गप्रशस्त करेंगे'। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 'आज स्थिति चाहे जैसी भी हो, लेकिन ज्ञान के कारण भविष्य अवश्य बदलेगा'।

जाति-आधारित जनगणना उन वंचित भारतीयों के लिए भविष्य के द्वार खोलने का एक प्रयास है जो सौ साल बाद भी जाति-व्यवस्था के कारण वंचित और कुंठित रहे हैं।

एक और बात हो रही है, हर चुनाव में दक्षिण और उत्तर के नतीजों में जो अंतर दिखाई दे रहा है, वह अंतर 2024 के लोकसभा चुनावी नतीजों के बाद खत्म हो जाएगा।

निश्चित रूप से नीतीश कुमार ने देश का नरेटिव बदल दिया है।

- कपिल पाटील
(राष्ट्रीय महासचिव, जनता दल (यूनाइटेड) और सदस्य, महाराष्ट्र विधान परिषद)
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नीतीश कुमार देशाचं नॅरेटिव्ह बदलतील ?



जातीगत जनगणनेच्या मुद्द्यावर प्रेस कॉन्फरन्स घेताना काँग्रेस नेते राहुल गांधी यांनी पत्रकारांना एक प्रश्न विचारला, 'मीडियामध्ये SC, ST आणि OBC किती आहेत ?'

त्या प्रेस कॉन्फरन्समध्ये एकच हात वर आला. तो कॅमेरामन OBC होता.

राहुल गांधी यांनी स्वतःचं वर्णन केल्याप्रमाणे तो ‘ऐतिहासिक प्रश्न’ ते विचारत होते. 33 वर्षांपूर्वीची त्यांचेच वडील राजीव गांधी आणि काँग्रेस पक्षाची एक ऐतिहासिक चूक ते तेव्हा दुरुस्त करत होते.

इंदिरा गांधी यांनी मंडल आयोगाचा अहवाल बासनात गुंडाळून ठेवला, त्यालाही आता 43 वर्षे झाली आहेत. आपल्या आजीचीही ऐतिहासिक चूक ते दुरुस्त करत होते.

दिग्विजय सिंह यांनी जानेवारी 2002 मध्ये मांडलेला 'भोपाळ अजेंडा' दलित, आदिवासींना न्याय देण्याचा प्रयत्न होता. पण त्यांच्याच पक्षाने तो गुंडाळून ठेवला, हाही इतिहास आहे.

‘काँग्रेसच्या राज्यात आम्ही जातगणना करू’ असं राहुल गांधी सांगत आहेत. कॉँग्रेसच्या ऐतिहासिक चुका दुरुस्त करण्याचा प्रयत्न राहुल गांधी करत आहेत.

हा चमत्कार घडला आहे बिहारचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यांच्यामुळे. भले काँग्रेसवाले त्यांना क्रेडिट देवो अथवा न देवोत. 

त्यांच्याच पुढाकाराने INDIA आघाडी स्थापन झाली आहे. टोकाच्या भिन्न मतांचे पक्ष एकत्र येणं हाही एक राजकीय चमत्कारच आहे.

बडी आघाडी केली होती डॉ. राम मनोहर लोहिया यांनी. कॉँग्रेसच्या विरोधात. तेव्हा त्यात जनसंघ होता. ‘संघा’चा धोका ओळखला होता लोहियावादी मधू लिमये यांनी. त्यांनी सिंचित केलेल्या बिहार मधील लोहियावादी नीतीशकुमार यांनी कॉँग्रेसला बरोबर घेत संघ भाजपच्या विरोधात बडी आघाडी उभी केली आहे. आणखी एक ऐतिहासिक चूक दुरुस्त करत.

बेदाग, समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष असलेल्या नीतीश कुमारांबद्दल वाटत असलेला विश्वास या सर्व टोकाच्या पक्षांना एकत्र आणू शकला. गांधी, आंबेडकर आणि लोहिया ही समाजवाद्यांची विचारधारा. त्या विचारधारेबाबत नीतीश कुमार यांनी कधी तडजोड केली नाही. CAA / NRC च्या विरोधात ठराव करणारे ते पहिले मुख्यमंत्री होते.

संयुक्त (यूनाइटेड) सोशलिस्ट पार्टीचे नेते डॉ. राम मनोहर लोहिया यांची घोषणा होती 'संसोपाने बांधी गाठ, पिछडा पावे सौ में साठ'. कर्पूरी ठाकूर यांच्यानंतर त्याची सर्वात प्रभावी अंमलबाजवणी जर कुणी केली असेल तर ती जनता दल (यूनाइटेड) च्या नीतीश कुमार यांनी. दलितांमधले वंचित आणि ओबीसींमधले सर्वाधिक वंचित यांना न्याय देण्याची भूमिका नीतीश कुमार यांनी घेतली. मंडल आयोग ही समाजवादयांचीच देणगी आहे.

मंडल आयोगाची घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रतापसिंह यांनी केली, तेव्हा राजीव गांधींनी विरोध केला होता !

आरक्षण विरोधकांकडून जो अतार्किक विरोध नेहमी केला जातो त्याच भाषेत राजीव गांधी यांनी 'मंत्रीपद भोगलेल्या मागासवर्गीयांच्या मुलांनाही आरक्षण देणार का?' असा सवाल संसदेत विचारला. तेव्हा सभागृहातूनच 'how many ?' असे किती ? असा प्रतिप्रश्न त्यांना विचारला गेला.

राहुल गांधींनी त्यांच्या पत्रकार परिषदेत तोच प्रश्न उलट्या दिशेने विचारला. Caste Census ला विरोध करणाऱ्यांना. ‘पत्रकारांमध्ये SC, ST आणि OBC पैकी 'how many' आहेत ?’

‘समाजात फूट पडेल’ असा राजीव गांधींचा त्यावेळी युक्तिवाद होता. तोच युक्तिवाद आता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करत आहेत. ‘जातीगत जनगणना देशाला जातींमध्ये विभाजीत करण्याचा डाव’ असल्याचं ते सांगत आहेत.

दक्षिणेतील द्रविड पक्ष आणि उत्तर व मध्य भारतातील समाजवादी जनता परिवारातील पक्ष व नेते फक्त या सामाजिक न्यायच्या बाजूने कायम उभे राहिले. सत्ता हाती आली तेव्हा तेव्हा वंचितांच्या हातात सत्ता, संपत्ती, प्रतिष्ठा, विकास आणि सहभाग या प्रत्येकातली हिस्सेदारी देण्याचा समाजवादी व द्रविड पक्षांनी प्रयत्न केला. आता फरक इतकाच की, राहुल गांधी यांनी कॉंग्रेस पक्षाला सामाजिक न्यायाच्या बाजूने उभं केलं आहे.

Scheduled Castes आणि Scheduled Tribes साठी संविधानिक तरतूद असूनही सत्तेपासून हे दोन्ही वर्ग अजूनही दूर आहेत. नोकरी, शिक्षण आणि विकासाच्या कोणत्याच आघाडीवर त्यांचं स्थान फारसं बदललेलं नाही. मंडल आयोग अमलात आल्यानंतर OBC साठी 27 टक्के आरक्षणाची तरतूद झाली. पण आजही 30 वर्षांनंतर ओबीसींचं अधिकारी वर्गातलं स्थान 4 टक्के सुद्धा नाही.

जातगणना म्हणजे केवळ डोकी मोजणं नाही. असंख्य जातीत विभागलेल्या समूहांची आर्थिक, सामाजिक आणि शैक्षणिक पाहणी करणं. देशातील विकासातील त्यांचं स्थान निश्चित करणं. समान हिस्सेदारीसाठी राजकीय अजेंडा निश्चित करणं. यासाठीचा हा आटापिटा आहे. 

बिहारच्या या प्रयोगाने अनेक बदल घडणार आहेत.

1) There is no alternative हा TINA फॅक्टर मोदींच्या यशात आजपर्यंत कारणीभूत ठरत आला होता. INDIA च्या उभारणीने त्या समजाला पहिल्यांदा छेद मिळणार आहे.

2) विकासाच्या तथाकथित राजकारणात उपेक्षित, वंचित जातींचा हिस्सा किती ? या प्रश्नाला पहिल्यांदाच उत्तर मिळणार आहे.

3) मराठा, जाट या सारख्या शेतकरी जातींच्या आरक्षणाची गाठ त्यातून सुटणार आहे.

4) द्वेष, नफरत यांच्या उन्मादी राजकारणाला देश पातळीवर रोखठोक उत्तर मिळणार आहे.

5) जात व्यवस्था आणि जातीभेदाने या देशातील 85 टक्के हून अधिक समाजाला त्यांचा हिस्साच नाकारला गेला होता. जातीच्या विकासातूनच जातीच्या अंताची शक्यता आहे.

शेतकरी, शूद्रजाती व दलितांसाठी आरक्षणाची मागणी करणारे महात्मा फुले पहिले.

'जातीपातीच्या संख्याप्रमाणे कामें नेमा ती l खरी न्यायाची रिति ll'

असं 'शेतकऱ्यांचा आसूड' मध्ये महात्मा फुले म्हणाले होते. 2 नोव्हेंबर 1882 रोजी ब्रिटिश सरकारकडे त्यांनी सरकारी खात्यात ब्राह्मणेतर शूद्र शेतकऱ्यांच्या मुलांना नोकऱ्या व शिक्षणासाठी जागा मागितल्या होत्या.

महात्मा फुलेंची ही मागणी प्रत्यक्षात आणली छत्रपती शाहू महाराज यांनी. 26 जुलै 1902 रोजी शाहू महाराज यांनी कोल्हापूर संस्थानात आरक्षण दिलं.

मद्रास प्रांतात 1921 साली पहिली कम्युनल ऑर्डर पास झाली. दक्षिणेत आरक्षण आलं. पेरियार आणि द्रमुकने ते 70 टक्के पर्यंत नेलं. खुद्द डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी संविधान सभेत 70 टक्के पर्यंत आरक्षणाची मर्यादा मान्य केली होती.

पण सुप्रीम कोर्टाने अपर कॅप घातली आहे 50 टक्क्यांची. आर्थिक दुर्बळांना आरक्षण देणारं केंद्रसरकार सामाजिक आरक्षणावरची अपर कॅप काढायला तयार नाही. आरक्षणाच्या मागणीवरुन जातीजातींत संघर्ष मात्र पेरले जात आहेत.

जातीभेदांच्या आणि संधीच्या विषमतांनी विभाजीत समाजात सर्जनशीलता आणि उत्पादकताच मारली जाते. समाजाचं भविष्य धोक्यात येतं. त्यातून लोकशाही संकटात येते.

नोबेल पारितोषिक विजेते अर्थतज्ज्ञ Joseph E. Stiglitz यांनी त्यांच्या ‘The Price of Inequality’ या पुस्तकात पुढील निरीक्षण नोंदवून ठेवलं आहे.

High inequality makes for a less efficient and productive economy.

Whenever we dismiss equality of opportunity, we are not using one of our most valuable assets - our people - in the most productive way possible.

नीतीश कुमारांची मागणी जाती विभाजनाची नाही. देशातलं पहिलं आरक्षण देणारे छत्रपती शाहू महाराज यांचं कानपूरला 19 एप्रिल 1919 रोजी अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभेच्या 13 व्या अधिवेशनात भाषण झालं होतं. ‘इंग्रजी शिक्षणाने भारतीयांचा तिसरा डोळा उघडला गेला आहे. शिक्षणाने जागृत झालेल्या देशातील जातींच्या संघटनांनी उन्नतीचा मार्ग खुला होणार आहे’, असं प्रतिपादन त्यांनी केलं होतं. आजची दशा काही असली तरी ज्ञानाने उद्याचं भविष्य बदलणार आहे, असा विश्वास त्यांनी व्यक्त केला होता.

शंभर वर्षांनंतरही जातींमध्ये कुंठित असलेल्या वंचित भारतीयांच्या भविष्याचा दरवाजा उघडण्याचा एक प्रयत्न आहे जातगणना.

आणखीन एक गोष्ट होऊ घातली आहे, प्रत्येक निवडणुकीत दक्षिण आणि उत्तरेच्या निकालात दिसलेली तफावत 2024 च्या लोकसभा निवडणूक निकालात संपलेली असेल.

नीतीश कुमार यांनी देशाचं नॅरेटिव्हच बदलून टाकलं आहे.

- कपिल पाटील
(राष्ट्रीय महासचिव, जनता दल (यूनाइटेड) तथा सदस्य, महाराष्ट्र विधान परिषद)
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पूर्व प्रसिद्धी : लोकसत्ता दि. 25 ऑक्टोबर 2023