Saturday 3 February 2018

लालूप्रसाद यादव के कारावास का मतलब

फासिस्ट राजनीति के विरुद्ध सामाजिक न्याय की लड़ाई


केंद्र की भाजपा सरकार का अपने विरोधियों से निपटने का एजेंडा एकदम साफ़ है। विरोध की आवाज उठाने वाले नेता अगर दूसरे धर्म के हैं तो उन्हें आतंकवादी घोषित दो। यदि वे दलित, आदिवासी हैं, तो उन्हें नक्सलवादी घोषित कर दो। बाक़ी लोगों को देशद्रोही घोषित कर दो।  इन तीन खांचे में जो राजनीतिक पार्टियां फिट नहीं बैठतीं, उन्हें भ्रष्टाचारी घोषित करने का विकल्प भी है। 

लालूप्रसाद यादव को दूसरी बार जेल में डालने के लिए इस चौथे विकल्प का ही भाजपा ने इस्तेमाल किया है। तथाकथित चारा घोटाले में बाक़ी सभी को क्लीनचिट मिल गई। जिनके कार्यकाल में यह कथित घोटाला शुरू हुआ, उन तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को एक केस में क्लीनचिट दे दी गई। ता की बाहर रहने का रास्ता मिल जाए । लालूप्रसाद यादव को केवल चुनकर भ्रष्टाचारी ठहराया गया है। चारा घोटाले की चर्चा जब देश भर में हो रही थी, तब लालूप्रसाद के कट्टर विरोधी भी कहा करते थे, कि घोटाले करने वाले दूसरे हैं, और गिरफ्तार लालूप्रसाद को किया गया है। उनके ऊपर आरोप क्या है? यह कि इस घोटाले को उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए नज़रअंदाज़ कर दिया।

विरोधियों को चुन-चुनकर यदी वे पिछडा या दलित वर्ग के है, जानबूझकर बदनाम करना केंद्र की सत्ता में बैठे लोगों का एक सूत्री कार्यक्रम है। सीबीआई को इसके लिए इस्तेमाल करनेवाली बात अब किसी से छुपी नहीं है। जो घोटाला हुआ ही नहीं, उसके लिए 15 महीने न्यायिक हिरासत में गुजारने के बाद ए. राजा अब निर्दोष साबित होकर जेल से बाहर आए हैं। जब वह जेल में थे, तब वकीलों को देने के लिए भी पैसे नहीं थे। लेकिन 15 महीने बदनामी की कारावास झेली। उनका राजनीतिक करीयर ही खत्म हो गया।

भ्रष्टाचार, देशद्रोह, आंतकवाद के आरोपों से बरी करने के लिए भाजपा ने ही गंगाजल की व्यवस्था करके रखी है। मोदी या भाजपा की शरण में चले जाओ। जो लोग वास्तव में भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं, वे पानी सर पर से जाने से पहले ही भाजपा की एनडीए नौका पर सवार हो चुके हैं। जो लोग वास्तव में भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे थे, वे खूंटा तोड़कर भाजपा की नौका के पानी में जाने से पहले उस पर सवार हो चुके हैं। कुछ लोग राजनीतिक मजबूरी के लिए चलते मोदी की शरण में जा रहे हैं। कुछ लोग गंगाजल छिड़कवाकर शुद्ध होने के लिए सीधे भाजपा में प्रवेश कर रहे हैं। अनेक नेता इंतज़ार में बाड़ पर बैठे हैं, इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? जगन्नाथ मिश्रा के चिरंजीवी ने जदयू के साथ मंत्री बनने के बाद सीधे भाजपा में छलांग लगा दी। नीतीश जगन्नाथ मिश्रा को मतदाताओं ने नकार दिया गया था, लेकिन पिताश्री की दिक्कते थोडी कम हो गई । शरण में जाने से इनकार करने वाले लालूप्रसाद को जेल भेज दिया गया। 

पूरे देश में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष फैला हुआ है। उसकी आग की लपटें मोदी के अपने राज्य गुजरात में ही भाजपा को लग चुकी हैं। एक युवा ने मोदी की सत्ता को चुनौती दी। उसके साथ कितना धोखा किया गया। हार्दिक पटेल की बदनाम करने के लिए भाजपा ने क्या नही किया। चुनाव के दौरान डॉक्टरर्ड सेक्स सीडी का प्रयोग भारतीय राजनीति के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।

यह छल और धोखा कितना और कैसा? विश्वविद्यालय में हुए असंतोष पर देशद्रोह की मुहर लगा दी। कन्हैया और उमर ख़ालिद को राष्ट्रविरोधी साबित करने के लिए, जिन्होंने कभी स्वतंत्रता दिवस पर भी तिरंगा नहीं फहराया, वे तिरंगे को हाथ में लेकर देशभक्ति की नसीहत दे रहे हैं। जिसका भाई देश के लिए शहीद हो चुका है और जिसके घर के 16 लोग सेना में हैं, उस कन्हैया को देशद्रोही साबित करने के लिए टीवी चैनल पर संबित पात्रा कितना चिल्लाते नज़़र आते हैं।

दलित आंदोलन को दबाने के लिए रोहित वमूला की जाति तक खोज निकाली गई। भीम आर्मी के चंद्रशेखर जेल में क़ैद किया गया हैं। उन्होंने ऐसा क्या अपराध कर दिया है? अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को जेल को कोठरी में बंद किया जा रहा है।

सीमा पर देश की रक्षा करने वाले सरताज के पिता, मोहम्मद अखलाक़ को बीफ़ रखने की अफ़वाह फैलाकर मार डाला गया।

उत्तर प्रदेश में जब छात्राओं ने आवाज़ उठाना शुरू किया तो कुलपति कपड़ों और उनके और देर रात आने पर ही सवाल करने लगे। मुख्यमंत्री ने मोराल पुलिसिंग शुरू कर दी। 

विश्वविद्यालय के आंदोलन को कुचलने के लिए महाराष्ट्र में 'कानूनी' रास्ता अपनाया गया है। यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स काउंसिल के छात्र राजनीतिक आंदोलन में भाग नहीं ले सके, इसके लिए महाराष्ट्र विधान सभा में एक विधेयक को मंजूरी दी गई है। (विधान परिषद में हम विपक्षी दलों ने इसका विरोध करके फ़िलहाल उस पर रोक लगा रखी है।)

सामाजिक न्याय कि बुलंद आवाज बने है शरद यादव। शरण जाने से इन्कार करते है।  उन्हे संसद से हटाने के लिए असंविधानिक तरीक़े का इस्तेमाल किया गया।  

देश में अघोषित आपात है। सत्ता की अदृश्य शक्ति लोकतंत्र का गला घोंट रही है। जो कुछ चल रहा है, वह भयानक है। देश की वैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जा रहा है, लालूप्रसाद यादव की क़ैद को इस बात की मिसाल है। इस पर चर्चा करने की आवश्यकता है। भाजपा ने पहले लालूप्रसाद यादव के हाथ से सत्ता हथिया ली और फिर उन्हें भ्रष्टाचार के कथित अपराधों के तहत बिरसा मुंडा जेल भेज दिया। लालूप्रसाद पर लगे आरोप पर क़ानून वैधानिक रूप से अपना काम करता तो बात अलग थी, जब क़ानून के हाथ को भी राजनीतिक शिकंजे में कस दिया जाता है, तब सवाल उठना लाज़मी है। सही मायने में लालूप्रसाद का अपराध क्या है? जब उन्होने आडवाणी का रथ रोक दिया था, तब से भाजपा उन पर कुपित है। तमाम कोशिशें कर लीं, लेकिन लालूप्रसाद उनकी शरण में जाने के लिए तैयार नहीं हुए। दूर-दराज़ के इलाक़ों में आवारा घूमने वाले बच्चों के लिए लालूप्रसाद ने चरवाहा विद्यालय खोला था। उन्हें ही एक चारा घोटाले में गिरफ़्तार कर लिया गया। आरोप लगाने के लिए उनके बच्चे तब बहुत छोटे थे लिहाज़ा, आज तेजस्वी यादव और मीसा भारती को फंसाया जा रहा है।  छल किया जा रहा है। बिहार में लालूप्रसाद यादव की सामाजिक न्याय की रणनीति ने धर्मद्वेष की राजनीति को कई बार पराजित किया है।  मोदी और भाजपा को इसी बात का ग़ुस्सा है। अब राजनीति मंच पर पार नहीं पा सके तो भ्रष्टाचार और कारावास का खेल खेल रहे हैं। 

यह समय ऐसा है जब अपनी भूमिका निभाने की आवश्यकता है, लालूप्रसाद यादव को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। शरद यादव जैसा बेदाग़ नेता लालूप्रसाद यादव के साथ आज दृढ़तापूर्वक खड़ा है। राजनीतिक लोकतंत्र सामाजिक लोकतंत्र के बिना सफल नहीं हो सकता है। इस बात का संकेत बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान प्रस्तुत करते समय ही दे चुके हैं। आपातकाल के विरोध में सांसद पद छोड़ने वाले शरद यादव, सामाजिक न्याय की लड़ाई में भी उतनी ही मज़बूती से खड़े हैं, मंडल आयोग के फ़ैसले के समय देश यह देख भी चुका है। भारतीय राजनीति में सामाजिक अंतर्विरोध की समझ रखने वाले शरद यादव का लालूप्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ खड़े होना स्वाभाविक है। हालांकि, भाजपा के विरोधी अब भी प्रतिक्रियाएं देने में झिझक रहे हैं, लेकिन उन्हें खुलकर आगे आना होगा। मोदी के मंत्रिमंडल में मंत्री अनंतकुमार हेगडे स्प्ष्टरूप से संविधान बदलने की भाषा बोल रहे हैं। हरियाणा और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वेष फैलाने वाली भाषा बोल रहे हैं। बम विस्फोट में मासूम बच्चों की बलि देने वाले कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को मोक्का क़ानून से मुक्त कर दिया गया है। जल्द ही उन्हें देशभक्त घोषित कर दिया जाएगा।  

अगर फासिस्ट राजनीति के ख़िलाफ़ सामाजिक न्याय की लड़ाई शुरू नहीं की गई, तो लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाएगा।

- कपिल पाटिल
(लेखक महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य तथा जनता दल युनायडेट के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष हैं)
kapilhpatil@gmail.com 

2 comments:

  1. बांभन ठाकुर बनिया का हिन्दूराष्ट्र !
    संविधान :-- मनुस्मृति
    दलित obc & माइनॉरिटीज का "संयुक्तराष्ट्र"
    संविधान:-- आंबेडकर रचित "वर्तमान संविधान"
    बनालो इस तरह का गठबंधन

    ReplyDelete
  2. जब लालकृष्ण आडवाणी को लालू ने गिरतार किया तगा तो वो एक राजनैतिक विद्वेष नही था क्या ?

    ReplyDelete